कविता - आइसक्रीम
||आइसक्रीम||
आइसक्रीम सी ये ज़िन्दगी कतरा – कतरा पिघल रही है ...
कभी बेपरवाह होके फ़िसल रही है ,
कभी परवाहों में संभल रही है ,
आइसक्रीम सी ये जिंदगी कतरा – कतरा पिघल रही है ...
बाधाओं – निराशाओं की चिलचिलाती धूप में,
आइसक्रीम ज़िन्दगी ; शीतल सुकून दे रही है ,
आइसक्रीम सी ये जिंदगी कतरा – कतरा पिघल रही है ...
बेस्वाद मन – बेस्वाद मौसम हर दिन कोई नई उलझन ,
नित नए फ्लेवर में आइसक्रीम ज़िन्दगी नए स्वाद दे रही है,
आइसक्रीम सी ये जिंदगी कतरा – कतरा पिघल रही है ...
कभी साझा हो जाती प्यार के लम्हों में ; कभी अकेलेपन में रह रही है,
ये आइसक्रीम ज़िन्दगी ; थोड़े ग़म – थोड़ी खुशियाँ दे रही है ,
आइसक्रीम सी ये जिंदगी कतरा – कतरा पिघल रही है ...
लेखिका✍️ © ® शिवांगी शर्मा
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